Monday, June 8, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी (चौदहम कड़ी )

घर मे ततेक लोक जमा भs गेल छथि जे दिक्कत तs होयते छैक हॉस्पिटल सेहो सब कियो एक सँग नही जा सकैत छी।मोन रहितो सभ दिन गेनाई सम्भव नही भs रहल छैक। बाबुजी आ मौसी के बेसी समय हॉस्पिटल मे बीति रहल छैन्ह। हिनका गेलाक बाद सँ हम काका के देखय के लेल नहि गेल छी। आय सोचि लेने रही किछु भs जाय हम हॉस्पिटल जेबे करब। बाबुजी के कहि हम हुनके सँग हॉस्पिटल पहुँचलहुँ मुदा काका के देखि मोन बड दुखी भs गेल। दिन दिन ओ कमजोर भेल जा रहल छथि आ हुनकर पेट फूलल जा रहल छैन्ह। बाबुजी डॉक्टर सँ भेंट करय के लेल चलि गेलाह, काका लग हम आ मौसी छलहुँ। जहिना बाबुजी गेलाह काका इशारा सँ हमरा अपना दिस बजेलाह। हम हुनके विषय मे सोचि रहल छलहुँ तुंरत लग मे गेलियैन्ह। ओ हाथ देखा हमरा अपना बगल मे बैसय के लेल कहलाह आ हम जहिना बैसलहुँ तुंरत हँसय के प्रयास करैत कहलाह " तोरा बुझल छौक आय काल्हि तोहर मौसी भइया सँ गप्प करय लगलिह"। हम किछु नहि बजलियैन्ह मुदा भीतर सँ हमरा ततेक तकलीफ भेल जे कहु एहेनो लोक होयत छैक जे अपन जीवनक अंत समय छैन्ह आ ओ हमरा आ मौसी दुनु गोटे के चेहरा देखि हँसेबाक प्रयास कs रहल छथि। असल मे बियाहक बाद दादी हमर मौसी के इ कहि गप्प नहि करय देलथिन्ह जे लोक भैंसुर सँ गप्प नहि करैत छैक। अपन विवाह सँ पहिने मौसी बाबुजी सँ गप्प तs करिते रहथि सारि जे छलथि बाबुजी के। आब एहेन परिस्थिति छलैक जे मौसी के बाबुजी सँ गप्प करला बिना गुजर चलय वाला नहि छलैन्ह।

भोरे सँ कियो मन्दिर गेल छलथि कियो मौनी बाबा लग तs कियो तांत्रिक लग घर मे हम आ माँ छी। हमर सबहक एक गोटे परिचित रोटी दs गेलथि आ पता चलल जे ओ रोटी पानि मे रहैत छैक आ ओकर पानि देला सँ केहेनो बिमारी कियाक नहि होय ठीक भs जाइत रहैक। एकटा कहबी छैक "डूबते को तिनके का सहारा" एकदम इ एहि ठाम लागू होयत छैक। माँ ओ हुनका सँ लs कs भगवान लग राखि देलथि।

तीन चारि दिन सँ सब गोटे परेशान आ चिंतित छलथि मौसी लग किछु कहबाक लेल सब के मना छैन्ह तथापि बुझाइत छैक मौसी के सब किछु बुझल छैन्ह। राति राति भरि ओ नहि सुतय छथिन्ह आ नहि ठीक सँ भोजन करैत छथि। साँझ मे छोटू आ हमरा चारु बहिन के छोरि बाकी सभ गोटे हॉस्पिटल चलि गेलाह। हमरा साहस नहि भेल जे कहितियैन्ह जे हमरो लs चलु। करीब नौ बजे राति मे छोटका मामा के छोरि सब आबि गेलथि मुदा हाव भाव बता रहल छलैन्ह जे काका केर स्थिति ठीक नहि छैन्ह। हमरा पुछय के हिम्मत नहि भs रहल छल जे हम किनको सँ पुछबैन्ह मुदा भरि राति नींद नहि भेल।

भोर मे उठलहुँ त बाबुजी ओहि सँ पहिनहि हॉस्पिटल जा चुकल रहथि। दादी, मौसी, पीसी, सभ गोटे मन्दिर मोनी बाबा लग गेल छलिह। अचानक देखलियैन्ह छोटका मामा परेशान जल्दी जल्दी आबि रहल छलाह आ आबिते पुछलाह "माँ सब कतs छथुन्ह "। हम कहितियैन्ह ताबैत माँ बाहर निकलि अयलीह आ माँ के देखैत तुंरत मौसी आ दादी के विषय मे पुछलाह। माँ जहिना कहलथि जे ओ मन्दिर गेल छथिन, इ सुनतहि मात्र एतबहि कहलाह "आब ओकर कोनो काज नहि छैक हम हुनका सब के लेने आबैत छियैन्ह"आ तुंरत घर सँ चलि गेलाह। माँ तs तुंरत कानय लगलिह मुदा हमरा किछु नहि फुरा रहल छल जे की करी। एतबा तs बुझिये गेलहुँ जे काका नहि रहलाह।

काका के दाह संस्कार जमशेदपुर मे भेलाक बाद सब के विचार भेलैंह जे काज गाम पर कयल जाय मुदा भारत बंद रहलाक चलते हम सब साँझ मे गाड़ी सँ निकलि गेलहुँ इ सोचि जे भोर तक गाम पहुँची जायब। बाबा के किछु नहि बुझल छलैन्ह।

सिमरिया मे अस्थि प्रवाह कs हम सब गाम के लेल प्रस्थान कs गेलहुँ।

एक तs सब दुखी ताहु मे बैसय के से दिक्कत छलैक मुदा जेना तेना हम सब इ सोचैत जा रहल छलहुँ जे आब तs गाम लग आबि गेल। सब के झपकी तs आबिये रहल छलैक। बाबुजी आ छोटका मामा आगू बैसल छलाह। अचानक हमर आँखि खुजल तs देखैत छी बाबुजी पूरा खून सँ लथ पथ छथि आ सीट पकरि पाछू एबाक कोशिश कs रहल छथि। ताबैत नजरि गेल एक बोझा कुसियार(गन्ना ) पूरा के पूरा अगुलका शीशा तोरि भीतर घुसल छलैक। हमरा किछु नहि बुझायल तs हम बाबुजी के पकरि कs अपना दिस खिँचय लगलहुँ । ताबैत छोटका मामा अयलाह ओ अपनहि खून सँ लथ पथ छलाह आ बाबुजी के कोहुना कs बाहर निकललाह हम सब सब गोटे गाड़ी सँ बाहर भेलहुँ । बाहर पहुँचि जे देखय मे आयल से वर्णन करय वाला नहि छैक। कुसियार सँ लदल बैल गाड़ी हमर सबहक गाड़ी के मारि देने छलैक। सोनू के माथ मे चोट छलैन्ह आ मामा के हाथ नाक दुनु ठाम सँ खून नजरि आयल। बाबुजी के सड़क कात मे एकटा गाछ तर सुतायल गेलैन्ह। गाड़ी केर ड्राईवर भागि गेल छलैक।

बुझाइत छलैक पूरा के पूरा गाम उठि के आबि गेल छलैक। पुछला पर पता चलल चकिया गाम लग मे छैक। विपत्ति पर विपत्ति हमरा सब पर परल छल मुदा गाम वाला सब मे सँ कथि लेल एको गोटे मदद करताह उलटा ओ सब सामन लs कs भगबाक प्रयास करय छलाह। ओ तs मामा छलाह जे ओहनो स्थिति मे बाबुजी आ हमरा सब के सँग सामान पर सेहो ध्यान देने छलाह। गामक एक आदमी मात्र एतबा मदद केलैथ जे ओ हमरा सब के कहलथि जे आब ट्रेनक के समय भs गेल छैक आ पॉँच मिनट मे अहि ठाम पहुँचत जओं ट्रेन रुकि जाय तs अहाँ सब ओहि सँ मोतिहारी जा सकैत छी। जतय हम सब छलहुँ ओहि केर बगल मे ट्रेनक लाइन छलैक माँ जहिना इ सुनलथि तुंरत बाबुजी के छोरि सीधे लाइन तरफ़ दौडि के पहुँचि गेलिह आ हुनका देखि मौसी सेहो। मामा मना करैत रहि गेलाह कथि लेल सुनतिह। हम बाबुजी के पकरि कs बैसल रहि। मामा की करितथि हुनको पाछू सँ जाय परलैन्ह।जखैन्ह ट्रेन नजरि आबय लागलय तs देखलियैन्ह मामा दौडी कs अयलाह। मामा के आबितहि हम माँ सब लग चलि गेलहुँ। कतबो कहिये लाइन पर सँ हटि जो माँ कथि लेल हटतिह। जओं जओं ट्रेन लग आबय हमर डर बढैत जाय। गाँव वाला सब कात मे ठाढ़ भs तमाशा देखि रहल छल। एक तs भारत बंद ताहु पर हम सब लाइन पर ठाढ़ भs गाड़ी रोकय छलहुँ। गाड़ी किछु दूर पर ठाढ़ भs गेलय आ ओहि के बाद धीरे धीरे हमरा सब दिस बढ़य लागल। ट्रेन एकदम धीरे धीरे चलय छल। सब गेट पर सिपाही सब ओहिना नजरि आबैत छल। माँ जहिना देखलथि जे गाड़ी आब लग आबि गेल छैक कि जोर जोर सँ चिल्लाबय लागलिह "गाड़ी रोको, मदद करो पूरे परिवार का एक्सिडेन्ट हुआ है"। गाड़ी लग मे आयल तs हम सब बगल भs गेलहुँ। पहिने तs बुझायल गाड़ी नहि रुकत मुदा किछु आगू जा रुकि गेल। हम सब सबस पहिने बाबुजी के ऊपर चढेलहुँ आ आराम सँ एकटा सीट पर सुता देलियैन्ह ओकर बाद सब कियो ट्रेन पर चढि बैसि गेलहुँ।

कोहुना मोतिहारी स्टेशन तक पहुँचलहुँ। पूरा स्टेशन लोक सँ भरल छलैक। असल मे गार्ड खबरि दs देने रहैक जे एक्सिडेन्ट वाला सब के आनि रहल छी। ओहि ठाम सँ हॉस्पिटल तक सब इंतज़ाम पुलिस वालाक छलैक। संयोग सँ ओहि ठामक एक गोट रेलवे के पैघ अधिकारी हमर परिवार के चिन्हैत छलाह ओ हमर बड़का काका आ एकटा हमर पितिऔत काका के जे कि रेलवे मे छलाह खबरि कs देलैथ।

बाबुजी के डॉक्टर कहि देलकैन्ह अछि तुंरत सीतापुर या अलिगढ लs जएबाक लेल हुनकर एक आँखि मे बहुत चोट छैन्ह। बाकी सब के घाव छलैक जे ठीक होयबा मे दू चारि दिन और लागि जयतैक।

मोतिहारी करीब करीब हमर पूरा परिवारक लोक पहुँचि गेल छलथि विचार भेलय जे लाल मामा आ माँ के छोरि सभ गोटे गाम जायब।

3 comments:

Unknown said...

waah waah waah waah

Anonymous said...

माँ के सावित्री रूप के प्रणाम
संस्मरण के जाहि शब्द केर मोती से आहन सजा रहल छी अद्भुत थिक,
शुभकामना,
जारी रहू.

Vidya Mishra said...

Didi ,

You made me cry ....I still remember and could visualise all those horified accident and subsiquently ....separation of our entire family ....which I could never dream that will be united again .....and I thank god a lot for ...meeting all of us together !!!
Though I was very small yet can't forget ...each and every moment of the life !!!
When we didn't know who...is going to feed us ...how to communicate to other extended families ....that there are two families involved have death and accident together ....we were so helpless ...there was no advance technology of telecommunication ....like cellphone or text messaging , SMS ....
And how to let our Baba know that he already lost his youngest son ...and another one is severly met with an accident ???? Now it
We all were crying ...but consoling each other !!!
I still get goose bumps......to think about that .

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