Friday, June 26, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी(सत्रहम कड़ी)

हमर मात्रिक सहरसा अछि। हमर पितिऔत बहिन जे कि हमर मसिऔत सेहो छथि हुनक विवाह सहरसा मे छलैन्ह हम सब ओहि विवाह मे जमशेदपुर s गेल रही हमर मात्रिक मे सभ कियो एक s एक गायक छथि कोनो विवाह वा यज्ञ होइत छैक s यज्ञ खतम भेला बाद पूरा परिवार दलान पर बैसि जाइत छथि गाना बजाना होइत रहैत छैक ओहियो दिन हम सब बाहर बैसल रही गाना बजाना होइत छलैक ओहि बीच मे एकटा वृद्ध व्यक्ति अयलाह मामा सब हमरा सब के बजा हुनका s परिचय करेलैन्ह कहलथि छथि "लिलो काका" हम नाम बड सुनने रहियैन्ह मुदा भेंट हुनका s पहिल बेर s रहल छल पॉँच दस मिनट हुनका s हम सब गप्प कयलहुँ ताहि के बाद चलि गेलाह ओतबहि काल मे दू टा गप्प हुनक विषय मे हम सब बुझलहुँ पहिल जे हुनका सांप बड डर लागैत छलैन्ह दोसर हुनका कियो बुढ कहैन्ह से पसीन नहि छलैन्ह हुनका गेलाक बाद तुंरत हमरा कहलाह हमर दोसर नाटकक नाम भेंट गेल "लिलो काका"

"बड़का साहेब" नाटक मे महिला शाखा केर हस्तक्षेप नाटक केर पूर्वाभ्यास के बीच मे जे नाटक सब होइत छलैक ताहि सs तंग आबि सोचि लेने छलथि जे आब दोसर संस्था के लेल नाटक नहि करब "मिथिला सांस्कृतिक" परिषद नाटक के पाछू पाई खर्च करय लेल सेहो तैयार नहि रहैक सब सोचि अपन अभिन्न मित्र बालमुकुन्द जी , श्री बैद्यनाथ जी श्री पूर्णानंद जी के सँग लs हुनका सबहक सहयोग एकटा नाट्य संस्था के स्थापना कयलैन्ह जाहि केर नाम राखल गेलैक "मिथिलाक्षर" (नाट्य एवं संगीत संस्था) मिथिलाक्षर के bye laws मे देल गेलैक जे व्यक्ति एहि संस्थाक सदस्य s सकैत अछि जे कोनो तरहक कलाकार हो कला से प्रेम राखैत हो मुदा सदस्यताक लेल कोनो शुल्क नहि छलैक

हिनकर आदति छलैन्ह जे कैयेक टा नाटकक नाम लैत रहैत छलाह मिथिलाक्षरक स्थापनाक बाद तय भेलैक जे शीघ्र एकटा नाटक कायल जाय कलाकार सब केर एकटा बैठक बजायल गेलय ओहि मे तय भेलैक जे नाटक होयत दू दिन नाटक होयत एकटा हिन्दी एकटा मैथिली मे कलाकार सब के नाटक केर नाम से बता देल गेलय मैथिली मे "लिलो काका" जखैन्ह हिन्दी केर नाटक के नाम कलाकार सब पुछलथिन s कहि देलथिन"डम डम डिगा डिगा "। मैथिली नाटकक नाम s हमरा बुझल छल हिन्दी वाला सुनि हमरो आश्चर्य भेल ओ नाम हुनका तत्काल ध्यान मे अयलैन्ह आ कहि देने रहथि।

"लिलो काका" नाटक जाहि समय लिखैत छलाह ओहि बीच में एक दिन हमरा ओकर संवाद सुनाबैत कहलाह लिलो काका के अंत में हम मारि देबैन्ह से इ नाटक केर नाम हम सोचि रहल छि लिलो काका सs "मिस्टर नीलो काका " कs दिये आ ओहि दिन सँ लिलो काका सँ नाटकक नाम "मिस्टर नीलो काका "भs गेलय।

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर पूर्वाभ्यास (रिहल्सल) जाहि समय होइत छलैक ओहि समय हम सपरिवार सब दिन रिहल्सल में जाई। अपने नीलो काका केर मुख्य भूमिका क रहल छलाह विक्की से ओहि में बालकलाकार के भूमिका में छलाह पुत्तु हिन्दी वाला नाटक के बालकलाकार छलाह आ बचलहुँ हम तs हमर काज पहिल छल जे सब दिन रति में घर आबि ओहि दिनका पूर्वभ्यासक समीक्षा केनाई दोसर कहि देने छलाह जे मंच पर बेसी भीर नहीं लगेबाके अछि ताहि हेतु ओ हमरे सम्हारे के छल। हम सब, सब दिन साँझ ६बजे रिहल्सल लेल जाई आ राति ९ बजे सँ पहिने कहियो नहिं लौटी।लौटलाक बाद बालमुकुन्द चौधरी आ इ बैसैथ आ ओहि समय व्यवस्था केर काज आ विचार विमर्श सब होय। कहि सकैत छि जे जूता सिलाई से लs कs चंडी पाठ तक स्वयं हिनके सम्भारय के छलैन्ह। बालमुकुन्द जी तs संग रहबे करैत छलाह।

नाटक सs पहिनहि सबटा टिकट बिका गेल छलैक दुनु नाटकक सफल मंचन भेलैक आ मैथिली के संग संग हिन्दी प्रेमी सब के सेहो नाटक में एकटा नवीनता भेटलैक। रातों राति जमशेदपुरक मंच आ जमशेदपुर केर नाट्य प्रेमी के बीच श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर केर नाम आबि गेलैन्ह

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर सफल मंचनक किछु महिना बाद पटनाक मैथिली संस्था "अरिपन "एकटा अन्तराष्ट्रीय नाट्य समारोहक निमंत्रण पठेने रहैक जाहि के इ स्वीकार क लेलाह। कलाकार सब स पूछल गेलय तs सब तैयार छलाह। समय बहुत कम छलैक मुदा नाटक केर सफल मंचन आ कलाकार सब के उत्साह हिनका और उत्साहित क देलकैन्ह। रिहल्सल ठीक ठाक चलैत छलैक अचानक एक दिन एकटा कलाकार जिनकर नाम लक्ष्मीकांत छलैन्ह आ जे सनिचराक भूमिका मे छलाह अयलाह आ कहलाह हुनक गाम गेनाइ बड़ आवश्यक छैन्ह मुदा ओ चारि पॉँच दिन में आबि जयताह। हिनकर मोन तs नहि मानलैंह मुदा फेर सोचलाह कैल नाटक छैक आ ओ आश्वासन देने छथि तs आबिये जयताह। रिहल्सल चलैत छलैक ओहि बीच एक दिन सांझ मे हम सब रिहल्सल लेल पहुँचलहुँ तs एक महिला कलाकार जे काकी के भूमिका में छलिह हुनकर समाद अयलैन्ह जे ओ पटना नहि जा सकैत छथि हुनका कोनो आवश्यक काज स शहर स बाहर जाय परि रहल छैन्ह। इ सुनतहि इ चिंतित भ गेलाह ओहि दिन रहल्सल की हेतैक सब कियो विकल्प के विषय मे सोचय लागि गेलहुँ। कलाकार सब के कहि देल गेलय घर जेबाक लेल, आ इ जे काल्हि धरि किछु ने किछु हेबे विकल्प भा जेतैक कलाकार सब के गेलाक बाद हम चारू गोटे आ बालमुकुन्द जी बाचि गेलहुँ मुदा हमरा सब के किछु नहि फुरैत छल। इ दुनु गोटे हमरा सs सेहो विकल्प केर विषय मे पुछलाह मुदा हमहु निरुतर रही, की कहितियैन्ह। आब त इज्जत के सवाल भs गेल छलैक।

बालमुकुन्द जी आ इ किछु समय के लेल बाहर गेलाह आ भीतर आबि हमरा कहलाह, "आब इ अहींके करय पडत"। इ सुनतहि हमरा हँसी लागि गेल, इहो हँसय लगलाह। किछु समय बाद इ गंभीर भs कहलाह "आब हम मजाक नहि क रहल छी"। आब इ हमर सबहक इज्जत केर सवाल छैक आ हमरा सब के दोसर स्त्री पात्र एतेक कम समय मे भेन्टनाइ बहुत कठिन अछि दोसर हमरा अहाँ पर विश्वास अछि अहाँ इ भूमिका निक सs कs सकैत छि।" हम निरुत्तर भ गेलहुं कहितियैन्ह की, इज्जत के सवाल छलैक। तय भेलय जे काल्हि सs हम काकी के भूमिका मे रहब आ रिहल्सल करब।

दोसर दिन हम सपरिवार रिहल्सल के लेल पहुँचि गेलहुँ आन दिन तs हम तरह तरह के टिप्पणी दैत छलहुँ मुदा ओहि दिन एकटा कलाकार के रूप मे पहुँचल रही। कलाकार सब के कहि देल गेलैंह जे आय स काकी के भूमिका मे हम रहब। हमर सब संवाद हिनके संग छलैन्ह अर्थात काकी के सब टा संवाद काका के संग छलैन्ह जे हमरा लेल बड़ कठिन छल। एक तs एतेक नीक कलाकार आ ताहू मे पति संग अभिनय केनाई । खैर रिहल्सल शुरू भेलय जखैन्ह हमर संवादक समय आयल तs हम उठि कs स्टेज दिस गेलहुँ मुदा जहिना हमर संवादक समय आयल आ हम जहिना हिनका दिस देखलियैन्ह हमरा हँसी छुटि गेल हमरा सँग चौधरी जी सेहो हँसि देलाह। ओकर बाद हम कैयेक बेर प्रयास केलहुँ मुदा जहिना हिनका दिस नजरि जाय कि हमरा हँसि छुटि जाय आ संग मे चौधरी जी सेहो हँसि दैथि। अंत मे चौधरी जी के बाहर जाय लेल कहल गेलैंह मुदा कथि लेल हमर हँसि रुकत। ओहि दिन आन सब कलाकार अपन अपन पाठ कs घर जाय गेलाह । इ सब कलाकार के आश्वासन देलथिन जे घबरेवा के नहि छय काकी वाला भूमिका निक होयबे करत।

दोसर दिन हम सोचि क आयल रही जे हम हँसब नहि आ नीक सs रिहल्सल करब मुदा जहिना हमर बेर आबै हँसि हम नहि रोकि पाबी। इ अंतिम दिन रिहल्सल तक चललय मुदा घर मे कखनहु कखनहु इ हमरा किछु किछु बताबैत रहैत छलाह। हमरा अपनहि बड़ चिंता होय जे की होयत मुदा इनका हमरा पर पूर्ण भरोस छलैन्ह आ सब के कहैथ "चिंता जुनि करय जाय जाऊ इ स्टेज पर एके बेर कs लेतिह हमरा पूर्ण विश्वास अछि"। हम त हिनकर विश्वास देखि कs दंग रही मुदा अपना हमरा डर लागैत छल।

लक्ष्मीकांत नहि अयलाह आ समाद पठौलैन्ह जे ओ सीधे पटना पहुँचि जयताह। हम सब पटना के लेल बिदा भेलहुँ रास्ता मे इ हमर बड़का बेटा भास्कर के किछु किछु बुझाबैत जाइत छलाह पटना पहुँचलहुँ ओहिओ ठाम लक्ष्मीकांत नहि पहुँचलाह। हम सब जाहि दिन पहुँचल रही ताहि दिन साँझ मे हमर सबहक स्टेज रिहल्सल छल। भोर स इ भास्कर के सनिचराक पाठ याद करय लेल कहने रहथि संग संग अपनहु रहैत छलाह। होटल मे दू बेर रिहल्सल भेलैक आ साँझ मे स्टेज रिहल्सल। दोसर दिन श्री ठाकुर सपरिवार कलाकार सब सँग नाटक लेल तैयार रहथि। नाटक पटना आ पूरा मिथिला मे धूम मचा देलक।

मिस्टर नीलो काका के कैयेक टा पुरस्कार भेन्टलय, श्री ठाकुर के श्रेष्ठ कलाकार , श्रेष्ठ आलेख तथा श्रेष्ठ महिला कलाकार के लेल हमरा हमर छोट बालक के श्रेष्ठ बालकलाकार के लेल सेहो पुरष्कृत कायल गेलैन्ह।


Thursday, June 25, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी(सोलहम कड़ी)

छोटका बेटा जन्मक बाद टिस्को से संबध s गेलाह बड़का बेटा भास्कर(पुत्तु )ओहि समय मे सवा दू बरखक छलाह छोटका बेटा मयुर (विक्की) मात्र तीन मासक हिनका अयलाक किछुए मास बाद बाबुजी केर बदली राँची s गेलैन्ह माँ सब जमशेदपुर सँ चलि गेलिह ओहि समय मे टिस्को के घर भेटय मे किछु दिक्कत छलैक वरिष्टता के आधार पर घर भेटैत छलैक हम सब एकटा छोट छीन घर s s रहय लगलहुँ

कलाकार मन बेसी दिन चुप नहि बैस सकैत छैक ताहू मे लल्लन जी सन कलाकार अपन व्यस्तताक बावजूद टिस्को के नौकरी मे अयलाक किछुए समय बाद सँ अपन नाट्य सांस्कृतिक गतिविधि मे सक्रिय s गेलाह ओहि समय मे टिस्को केर पदाधिकारी कर्मचारी सब के द्वारा कर्मचारी सब के लेल सुरक्षा नाटकक आयोजन कएल जाइत छलैक ओहि नाटक सब पर खर्च सेहो बहुत कम कयल जाइत छलैक नाटक सब एक दम नीरस संदेश मात्र के लेल रहैत छलैक दर्शक सेहो मात्र अपन विभागक किछु आन विभागक लोक जे सब नाटक मे भाग लेत छलाह रहैत छलैक कार्य भार स्म्भरलाक किछुए मास बाद अपन विभागक सुरक्षा नाटक मे भाग s ओकर संवाद मे फेर बदल s ओहि मे सर्वश्रेष्ट अभिनेताक पुरस्कार प्राप्त केलाह दोसर बरख जओं हुनका नाटक लेल कहल गेलैन्ह s साफ कहि देलथिन जे नाटक रविन्द्र भवन जे कि जमशेदपुर के सबस नीक प्रेक्षागृह छलैक ओहि मे करताह ओहि बरख नाटक रविन्द्र भवन मे भेलैक दर्शक के ओहि नीरस विषय पर कयल गेल सुरक्षा नाटक खूब पसिन भेलैक श्री ठाकुरक जमशेद्पुरक नाट्य यात्रा एहि ठाम सँ प्रारम्भ s गेलैन्ह

सब दिन मैथिली केर सेवा करय लेल प्रतिबद्ध श्री ठाकुर जी के मोन मे सदिखन रहैत छलैन्ह जे किछु करि वा नहि मैथिली भाषा साहित्य के अपन कलम सँ किछु s सहयोग करिए सकैत छलैथ जमशेद्पुरक मैथिली संस्था "मिथला सांस्कृतिक परिषद" केर सदस्यता s अयलाक किछुएक समय पश्चात सोचि लेलाह कि मैथिली केर सेवा करताह सन १९८१ मे एकटा आन्दोलन शुरू भेल छलैक गाम गाम सब शहर सँ सेहो प्रधानमंत्री के नाम पोस्ट कार्ड पर मैथिली भाषा केर अष्ठम सूची मे स्थान देबाक लेल आग्रह कयल गेल छलैन्ह जमशेदपुर मे एकटा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन से करबाक विचार भेलैक जाहि केर भार श्री ठाकुर जी के देल गेलैन्ह श्री ठाकुर जी तय केलाह कि एकटा सगीत संध्या कयल जाय ओहि कार्यक्रमक नाम देल गेलैक संकल्प दिवस ओहि कार्यक्रम के लेल सबटा गीत मैथिली मे अपनहि लिखि ओकर धुन s तैयारी कराब मे लागि गेलाह मैथिली मे हुनक पहिल कार्यक्रम छलैन्ह कार्यक्रम मे मुख्य गायक सेहो अपनहि छलथि कार्यक्रमक उदघाटन गीत नाम से "संकल्प गीत"परलैक

"संकल्प गीत"

संकल्प लिय संकल्प लिय
संकल्प लिय यो
बाजब मैथिली मिथिलाक लेल जियब यो ....
संकल्प लिय..............२।

शांतिमय प्रयास हमर ई
सुनी लिय देशक नेता.....३
सूची अष्टम मे स्थान दियो
आरो ने किछु कहब यो ....
संकल्प लिय.......२

लाखक लाख पत्र जाइत अछि
आँखि खोइल क देखू .....३
aआबि गेल समय इन्द्रा जी
मिथिलाक मान राखू ......३
संघर्ष बढ़त जं बात ने मानबै
आरो ने हम साहब यै
संकल्प लिय ...........३।

-लल्लन प्रसाद ठाकुर -

अहि कार्यक्रमक खूब प्रशंसा भेलैक आ श्री ठाकुर जी के एहि कार्यक्रम कय जे प्रसन्नता भेलैन्ह ताहि केर परिणाम स्वरुप ओ एकटा नाटक करबाक ठानि लेलैन्ह। जमशेदपुरक मिथिला सांस्कृतिक परिषद केर महिला शाखाक स्थापना भेलैक आ ओकर सदस्या लोकनि अपन एकटा मुख्य कार्यक्रम करबाक लेल श्री ठाकुर जी के आग्रह केलथि। ठाकुर जी हुनक सबहक आग्रह मानि लेलाह आ तय भेलय जे नाटक होयतैक।ठाकुर जी के पहिल नाटक" बड़का साहेब" ओकरे देन छैक। ओहि नाटक केर लिखैत हम देखने छियैन्ह बुझाइए मे नहि आयल जे नाटक लिखनाइ एको रति कठिन छैक। ततेक सामान्य आ सरल भाव सँ लिखैत छलाह एक एक टा संवाद के हमरा पहिनहि कैयेक बेर सुनबैत छलाह। हमरा तs नाटकक पूर्वाभ्यास सँ पहिनहि सबटा संवाद याद भ गेल छल।

एक बेर जे ठानि लैत छलाह ओकरा पूरा करबा मे अपन जी जान लगा दैत छलाह। बड़का साहेब केर पूर्वाभ्यास महिला शाखा केर एक गोट सदस्य के ओहि ठाम होइत छलैन्ह। हम सब तs सपरिवार सब दिन उपस्थित रहैत छलहुँ। एक तs अपने मुख्य भूमिका मे छलाह दोसर विक्की से ओहि नाटक केर बालकलाकार छलाह तेसर बहुत रास काज नाटक संबंधी होइत छलैक जे हमरा भार देने छलाह आ चाहैत छलाह जे हम सब दिन नाटकक अभ्यास देखि जाहि सँ हम बहुत किछु देखि कs बुझि लियय।

बड़का साहेब केर पूर्वाभ्यास मे सब दिन महिला शाखाक सदस्य द्वारा कैयेक टा नाटक होयत रहैत छलैक। हुनका सब के ई विश्वास नहि छलैन्ह जे नाटक नीक होयतैक। किछु सदस्य बुझैत छलिह जे ओ नाटक केर विषय मे अधिक बुझैत छथि, मुदा प्रत्येक नाटक मे निर्देश केर अपन कल्पना आ सोच होयत छैक। सब दिन इ हुनका लोकनि के समझाबथि जे अहाँ सब निश्चिंत रहू नाटक नीक होयबे करत मुदा हुनका सब के भरोस नहीं होयेंह। इ सब दिन घर आबि क कहैथ इ पहिल आ अंतिम अछि आब हम दोसरा के लेल नाटक नहीं करब ख़ास क मौगी सब लेल तs नहिएँ टा। सब दिन हम आ बालमुकुन्द जी हिनका बुझाबियैन्ह। एक तs एकहू टा नीक कलाकार नहि रहथि दोसर हर काज मे व्यवस्थापक सबहक हस्तक्षेप। हिनका नीक नहि लागैन्ह मुदा जखैन्ह कार्यक भार लs लेने रहथि त पूरा करबाक छलैन्ह।

एक त सब दिन नाटकक पूर्वाभ्यास में किछु नहि किछु होइत रहैत छलैक ताहि पर नाटक मंचनक तारीख स तीन चारी दिन पहिने इंदिरा गाँधी के हत्या भ गेलैक आ प्रशासन दिस स सबटा कार्यक्रम रद्द करबाक आदेश आबि गेलैक। दोसर तिथि तय करबा में समय नहीं लगलैक अखबार में से निकलबा देल गेलैक मुदा हुनक मोन नहि मानलैंह आ जाहि तारीख के नाटक मंचन होयबाक छलैक ताहि दिन अपनहि बालमुकुन्द जी आ किछु कलाकार लोकनि के लs रविन्द्र भवन केर गेट लग ठाढ़ भ गेलाह इ सोचि जे लोक के असुविधा नही होय।

२० नवम्बर १९८३ के पहिल बेर जमशेदपुर में मैथिली नाटक "बड़का साहेब" केर मंचन भेलैक आ ओहि नाटक केर सफल मंचन सs जमशेदपुरक मैथिली भाषा भाषी अचम्भित रहि गेलाह। पहिल बेर कोनो मैथिली नाटक टिकट पर भेल छलैक। "बड़का साहेब " नाटकक अनुभव हुनका दोसर नाटक लिखय लेल आ ओकर मंचन करय लेल बाध्य कs देलकैन्ह।

Saturday, June 13, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी (पन्द्रहम कड़ी )

माँ लाल मामाक सँग बाबुजी के लs कs अलिगढ चलि गेलिह, छोटू के तs सँग लs गेलिह मुदा बाकि तीनू बहिन के हमरा पर छोड़ि कs गेल रहथि। हम सब बड़का काका काकी सँग मोतिहारी सँ गाम आबि गेलहुँ। दादी मौसी मधु निक्की पप्पू आ सोनू सेहो संगे आबि गेलाह। गाम पहुँचलहुँ, ई समाचार सुनि बाबा बड दुखी छलाह। एकटा बेटा के गेलाक दुःख तs रहबे करैन्ह दोसर बेटा के दुघॅटनाक समाचार हुनका आओर तोड़ि देलकैन्ह। इम्हर सब बच्चा सब डरल सहमल रहथि। मधु सब तs मौसी लग रहैत रहथि दादी से, अपन दोसर दोसर काज मे रहैत छलिह मुदा हमर तीनू बहिन हमरा एको मिनट लेल नहि छोरथि। हमरा अपने किछु नहि फुरैत छल की करी। डरल तs हमहू रही मुदा हुनका सब केर सोंझा मे साहस केने रही। बौआ सेहो गाम पर छलथि हुनकर परीक्षा भs गेल रहैन्ह।

दोसर दिन भरि दिन लोकक एनाई गेनाई लागल रहलै आ भरि दिन कन्ना रोहटि सेहो होयत रहैत छलैक। जतेक कन्ना रोहटि होय ततेक बच्चा सब और डरि जैत छलथि। साँझ होयत देरी सब हमरा पकरि कs बैसि जाय गेलिह। अचानक हम जाहि कोठरी मे रही ताहि मे बड़की काकी अयलीह आ बच्चा सब के पकड़ि क किछु जलखई करेबाक लेल लs गेलिह। हम चुप चाप घर मे बैसि कs असग़र कानैत छलहुँ आ भगवान सँ कहैत छलहुँ हे भगवान माँ नहि छैथ बाबुजी के की होयतैन्ह नहि जानि एखैंह कम सँ कम हिनका पठा दियौन हम असग़र कोना तीनू के सम्भारब। मौसी आ मधु सब सँग तs सब गोटे के सहानुभूति छलैन्ह मुदा इ तीनू बहिन के देखय लेल हमही टा छलियैन्ह। ई सोचिये रहल छलहुँ कि देखलियैक एकटा जन बैग लेने आयल आ राखि कs चलि गेल। देखला सँ हिनके बैग जेहेन छलैक मुदा जा धरि हम किछु पुछतिए ओ चलि गेल। हमरा मोन मे पचास तरहक बात आबि रहल छल कि देखलियैन्ह इ घर मे घुसि रहल छथि। इ सीधे हमरा लग अयलाह आ जहिना पुछलाह अहाँ कोना छी कि हमरा नहि रहि भेल आ हम हिनका पकरि कs खूब कानय लगलहुँ। इहो पाछु कथि लेल रहताह आ दुनु गोटे एक दुसरा के पकरि कs कानैत छलहुँ। हमरा सब केर मुँह सँ एको शब्द कथि लेल निकलत।

अचानक हमरा बुझायल जे तीनू बहिन आबि रहल छथि। हम अपना के सम्हारैत हिनका सँ पुछलियैन्ह अहाँके कोना बुझल भेल। कहलाह हम तs मोतिहारी आयल छलहुँ अपन कॉलेजक काज सँ ओझाजी ओहिठाम गेलहुँ तs पता चलल। हम पहिने हॉस्पिटल गेल रहि बाबुजी आ मामा के देखि हमर मोन ख़राब भs गेल। ओहि ठाम सँ भागल एहि ठाम आयल छी। हम सब गप्प करिते छलहुँ कि तीनू बहिन आबि गेलिह आ आबिते सोनी हिनका पकरि कs कानय लगलीह। बिन्नी अन्नू से लग मे आबि गेलिह। ओ दृश्य हम नहि बिसरी सकैत छी। बौआ तs लड़का छलाह आ बाबा सँ हुनका बड लगाव छलैन्ह मुदा हमरा सब के मोन मे असुरक्षा के भावना छल ओ हिनका देखि खतम भेल।

काका केर काज खतम भेलाक बाद सब चलि गेलाह हम चारु भाई बहिन, बाबा दादी आ मौसी अपन चारु बच्चा सब सँग रहि गेलिह। इहो चलि गेलाह, हमरा एको रत्ती गाम पर मोन नहि लागैत छल, मुदा मजबूरी मे रहय परल। अचानक एक दिन तार आयल जे नानी सेहो नहि रहलिह। काका के देहान्तक खबरी सुनि ओ खाना पीना छोरि देने रहथि आ हुनक देहांत भs गेलैन्ह। तार अयलाक एक दू दिन बाद मामा अयलाह ओ अपना सँग मौसी आ हुनक चारु बच्चा सब के सेहो लs कs चलि गेलाह मुदा ओ एक बेर हमरा सब के कहबो नहि केलाह जे अहुँ सब चलु। हम ओ दिन नहि बिसरी सकैत छी मौसी सब केर गेलाक बाद मात्र हम पाँच भाई बहिन आ बाबा दादी रहि गेलहुँ एक तs हम सब कहियो गाम असग़र नहि रहल रही ताहु परओहेन परिस्थिति मे। राति राति भर हम डर सँ नहि सूती। सोनी तs राति मे हमारा पकडि कs सुतथि आ ताहू पर कैयक बेर डर सँ चिल्ला उठैथ।

एक तs हम अपनहि डरपोक ताहि पर सब भाई बहिन के जिम्मेदारी हमरा पर रहैक। दादी बाबा तs बुढ छलथि। माँ बाबुजी के कोनो समाचार से बुझय मे नहि आबि रहल छल। हम राति राति भर सूती नहि आ सोचैत रहैत छलहुँ।

नहि जानी कियैक करीब पन्द्रह दिन भs गेलैक माँ बाबूजी के कोनो समाचार नहि भेटल छल इ सोचि सोचि हमरा बड चिन्ता होयत छल। राति के निन्द तs नहिये होय उलटे चारि पाँच दिन सँ हमर छाती मे जोर सँ दर्द होमय लागल । पहिने तs दादी के हम नहि कहलियैन्ह मुदा बाद मे कहय परल। दादी के से चिन्ता होमय लागलैंह, ओ अपना भरि किछु किछु सँ मालिश करथि मुदा ठीक नहि भेल। अंत मे दादी कहलथि ठाकुर जी के चट्ठी लिखि दहुन आबि जयताह। मुदा ओ अपनहि हमरा सब केर देखय लेल पहुँचि गेलाह आ दादी के कहला पर हमरा लs क पटना डॉक्टर सँ देखाबय लेल लs गेलाह। पटना मे हमर मौसी रहैत छलिह हुनके ओहि ठाम रही इलाज करेबाक विचार भेलैक। सब गोटे के जेबा मे तs झंझट छलैक मुदा हम अन्नू के नहि छोरलियैन्ह आ हुनका अपना सँग लेने गेलियैन्ह। सोनी बिन्नी के दादी राखि लेलथिन्ह आ कहलथि कोनो चिन्ता नहि करय के लेल।

हम सब साँझ मे पटना पहुँचलहुँ आ मौसी के डेरा गेलहुँ, ओहि ठाम बाबुजी पहिनहि सँ रहथि।ओ सब भोर मे पहुँचल रहथि। माँ सँ पता चलल जे बाबुजी के कोहुना एकटा आँखि बाचि गेलैन्ह दोसर नहि बचायल जा सकलैन्ह। दोसर दिन हम सब जमशेदपुर आबि गेलहुँ ।

Monday, June 8, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी (चौदहम कड़ी )

घर मे ततेक लोक जमा भs गेल छथि जे दिक्कत तs होयते छैक हॉस्पिटल सेहो सब कियो एक सँग नही जा सकैत छी।मोन रहितो सभ दिन गेनाई सम्भव नही भs रहल छैक। बाबुजी आ मौसी के बेसी समय हॉस्पिटल मे बीति रहल छैन्ह। हिनका गेलाक बाद सँ हम काका के देखय के लेल नहि गेल छी। आय सोचि लेने रही किछु भs जाय हम हॉस्पिटल जेबे करब। बाबुजी के कहि हम हुनके सँग हॉस्पिटल पहुँचलहुँ मुदा काका के देखि मोन बड दुखी भs गेल। दिन दिन ओ कमजोर भेल जा रहल छथि आ हुनकर पेट फूलल जा रहल छैन्ह। बाबुजी डॉक्टर सँ भेंट करय के लेल चलि गेलाह, काका लग हम आ मौसी छलहुँ। जहिना बाबुजी गेलाह काका इशारा सँ हमरा अपना दिस बजेलाह। हम हुनके विषय मे सोचि रहल छलहुँ तुंरत लग मे गेलियैन्ह। ओ हाथ देखा हमरा अपना बगल मे बैसय के लेल कहलाह आ हम जहिना बैसलहुँ तुंरत हँसय के प्रयास करैत कहलाह " तोरा बुझल छौक आय काल्हि तोहर मौसी भइया सँ गप्प करय लगलिह"। हम किछु नहि बजलियैन्ह मुदा भीतर सँ हमरा ततेक तकलीफ भेल जे कहु एहेनो लोक होयत छैक जे अपन जीवनक अंत समय छैन्ह आ ओ हमरा आ मौसी दुनु गोटे के चेहरा देखि हँसेबाक प्रयास कs रहल छथि। असल मे बियाहक बाद दादी हमर मौसी के इ कहि गप्प नहि करय देलथिन्ह जे लोक भैंसुर सँ गप्प नहि करैत छैक। अपन विवाह सँ पहिने मौसी बाबुजी सँ गप्प तs करिते रहथि सारि जे छलथि बाबुजी के। आब एहेन परिस्थिति छलैक जे मौसी के बाबुजी सँ गप्प करला बिना गुजर चलय वाला नहि छलैन्ह।

भोरे सँ कियो मन्दिर गेल छलथि कियो मौनी बाबा लग तs कियो तांत्रिक लग घर मे हम आ माँ छी। हमर सबहक एक गोटे परिचित रोटी दs गेलथि आ पता चलल जे ओ रोटी पानि मे रहैत छैक आ ओकर पानि देला सँ केहेनो बिमारी कियाक नहि होय ठीक भs जाइत रहैक। एकटा कहबी छैक "डूबते को तिनके का सहारा" एकदम इ एहि ठाम लागू होयत छैक। माँ ओ हुनका सँ लs कs भगवान लग राखि देलथि।

तीन चारि दिन सँ सब गोटे परेशान आ चिंतित छलथि मौसी लग किछु कहबाक लेल सब के मना छैन्ह तथापि बुझाइत छैक मौसी के सब किछु बुझल छैन्ह। राति राति भरि ओ नहि सुतय छथिन्ह आ नहि ठीक सँ भोजन करैत छथि। साँझ मे छोटू आ हमरा चारु बहिन के छोरि बाकी सभ गोटे हॉस्पिटल चलि गेलाह। हमरा साहस नहि भेल जे कहितियैन्ह जे हमरो लs चलु। करीब नौ बजे राति मे छोटका मामा के छोरि सब आबि गेलथि मुदा हाव भाव बता रहल छलैन्ह जे काका केर स्थिति ठीक नहि छैन्ह। हमरा पुछय के हिम्मत नहि भs रहल छल जे हम किनको सँ पुछबैन्ह मुदा भरि राति नींद नहि भेल।

भोर मे उठलहुँ त बाबुजी ओहि सँ पहिनहि हॉस्पिटल जा चुकल रहथि। दादी, मौसी, पीसी, सभ गोटे मन्दिर मोनी बाबा लग गेल छलिह। अचानक देखलियैन्ह छोटका मामा परेशान जल्दी जल्दी आबि रहल छलाह आ आबिते पुछलाह "माँ सब कतs छथुन्ह "। हम कहितियैन्ह ताबैत माँ बाहर निकलि अयलीह आ माँ के देखैत तुंरत मौसी आ दादी के विषय मे पुछलाह। माँ जहिना कहलथि जे ओ मन्दिर गेल छथिन, इ सुनतहि मात्र एतबहि कहलाह "आब ओकर कोनो काज नहि छैक हम हुनका सब के लेने आबैत छियैन्ह"आ तुंरत घर सँ चलि गेलाह। माँ तs तुंरत कानय लगलिह मुदा हमरा किछु नहि फुरा रहल छल जे की करी। एतबा तs बुझिये गेलहुँ जे काका नहि रहलाह।

काका के दाह संस्कार जमशेदपुर मे भेलाक बाद सब के विचार भेलैंह जे काज गाम पर कयल जाय मुदा भारत बंद रहलाक चलते हम सब साँझ मे गाड़ी सँ निकलि गेलहुँ इ सोचि जे भोर तक गाम पहुँची जायब। बाबा के किछु नहि बुझल छलैन्ह।

सिमरिया मे अस्थि प्रवाह कs हम सब गाम के लेल प्रस्थान कs गेलहुँ।

एक तs सब दुखी ताहु मे बैसय के से दिक्कत छलैक मुदा जेना तेना हम सब इ सोचैत जा रहल छलहुँ जे आब तs गाम लग आबि गेल। सब के झपकी तs आबिये रहल छलैक। बाबुजी आ छोटका मामा आगू बैसल छलाह। अचानक हमर आँखि खुजल तs देखैत छी बाबुजी पूरा खून सँ लथ पथ छथि आ सीट पकरि पाछू एबाक कोशिश कs रहल छथि। ताबैत नजरि गेल एक बोझा कुसियार(गन्ना ) पूरा के पूरा अगुलका शीशा तोरि भीतर घुसल छलैक। हमरा किछु नहि बुझायल तs हम बाबुजी के पकरि कs अपना दिस खिँचय लगलहुँ । ताबैत छोटका मामा अयलाह ओ अपनहि खून सँ लथ पथ छलाह आ बाबुजी के कोहुना कs बाहर निकललाह हम सब सब गोटे गाड़ी सँ बाहर भेलहुँ । बाहर पहुँचि जे देखय मे आयल से वर्णन करय वाला नहि छैक। कुसियार सँ लदल बैल गाड़ी हमर सबहक गाड़ी के मारि देने छलैक। सोनू के माथ मे चोट छलैन्ह आ मामा के हाथ नाक दुनु ठाम सँ खून नजरि आयल। बाबुजी के सड़क कात मे एकटा गाछ तर सुतायल गेलैन्ह। गाड़ी केर ड्राईवर भागि गेल छलैक।

बुझाइत छलैक पूरा के पूरा गाम उठि के आबि गेल छलैक। पुछला पर पता चलल चकिया गाम लग मे छैक। विपत्ति पर विपत्ति हमरा सब पर परल छल मुदा गाम वाला सब मे सँ कथि लेल एको गोटे मदद करताह उलटा ओ सब सामन लs कs भगबाक प्रयास करय छलाह। ओ तs मामा छलाह जे ओहनो स्थिति मे बाबुजी आ हमरा सब के सँग सामान पर सेहो ध्यान देने छलाह। गामक एक आदमी मात्र एतबा मदद केलैथ जे ओ हमरा सब के कहलथि जे आब ट्रेनक के समय भs गेल छैक आ पॉँच मिनट मे अहि ठाम पहुँचत जओं ट्रेन रुकि जाय तs अहाँ सब ओहि सँ मोतिहारी जा सकैत छी। जतय हम सब छलहुँ ओहि केर बगल मे ट्रेनक लाइन छलैक माँ जहिना इ सुनलथि तुंरत बाबुजी के छोरि सीधे लाइन तरफ़ दौडि के पहुँचि गेलिह आ हुनका देखि मौसी सेहो। मामा मना करैत रहि गेलाह कथि लेल सुनतिह। हम बाबुजी के पकरि कs बैसल रहि। मामा की करितथि हुनको पाछू सँ जाय परलैन्ह।जखैन्ह ट्रेन नजरि आबय लागलय तs देखलियैन्ह मामा दौडी कs अयलाह। मामा के आबितहि हम माँ सब लग चलि गेलहुँ। कतबो कहिये लाइन पर सँ हटि जो माँ कथि लेल हटतिह। जओं जओं ट्रेन लग आबय हमर डर बढैत जाय। गाँव वाला सब कात मे ठाढ़ भs तमाशा देखि रहल छल। एक तs भारत बंद ताहु पर हम सब लाइन पर ठाढ़ भs गाड़ी रोकय छलहुँ। गाड़ी किछु दूर पर ठाढ़ भs गेलय आ ओहि के बाद धीरे धीरे हमरा सब दिस बढ़य लागल। ट्रेन एकदम धीरे धीरे चलय छल। सब गेट पर सिपाही सब ओहिना नजरि आबैत छल। माँ जहिना देखलथि जे गाड़ी आब लग आबि गेल छैक कि जोर जोर सँ चिल्लाबय लागलिह "गाड़ी रोको, मदद करो पूरे परिवार का एक्सिडेन्ट हुआ है"। गाड़ी लग मे आयल तs हम सब बगल भs गेलहुँ। पहिने तs बुझायल गाड़ी नहि रुकत मुदा किछु आगू जा रुकि गेल। हम सब सबस पहिने बाबुजी के ऊपर चढेलहुँ आ आराम सँ एकटा सीट पर सुता देलियैन्ह ओकर बाद सब कियो ट्रेन पर चढि बैसि गेलहुँ।

कोहुना मोतिहारी स्टेशन तक पहुँचलहुँ। पूरा स्टेशन लोक सँ भरल छलैक। असल मे गार्ड खबरि दs देने रहैक जे एक्सिडेन्ट वाला सब के आनि रहल छी। ओहि ठाम सँ हॉस्पिटल तक सब इंतज़ाम पुलिस वालाक छलैक। संयोग सँ ओहि ठामक एक गोट रेलवे के पैघ अधिकारी हमर परिवार के चिन्हैत छलाह ओ हमर बड़का काका आ एकटा हमर पितिऔत काका के जे कि रेलवे मे छलाह खबरि कs देलैथ।

बाबुजी के डॉक्टर कहि देलकैन्ह अछि तुंरत सीतापुर या अलिगढ लs जएबाक लेल हुनकर एक आँखि मे बहुत चोट छैन्ह। बाकी सब के घाव छलैक जे ठीक होयबा मे दू चारि दिन और लागि जयतैक।

मोतिहारी करीब करीब हमर पूरा परिवारक लोक पहुँचि गेल छलथि विचार भेलय जे लाल मामा आ माँ के छोरि सभ गोटे गाम जायब।
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