Friday, June 26, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी(सत्रहम कड़ी)

हमर मात्रिक सहरसा अछि। हमर पितिऔत बहिन जे कि हमर मसिऔत सेहो छथि हुनक विवाह सहरसा मे छलैन्ह हम सब ओहि विवाह मे जमशेदपुर s गेल रही हमर मात्रिक मे सभ कियो एक s एक गायक छथि कोनो विवाह वा यज्ञ होइत छैक s यज्ञ खतम भेला बाद पूरा परिवार दलान पर बैसि जाइत छथि गाना बजाना होइत रहैत छैक ओहियो दिन हम सब बाहर बैसल रही गाना बजाना होइत छलैक ओहि बीच मे एकटा वृद्ध व्यक्ति अयलाह मामा सब हमरा सब के बजा हुनका s परिचय करेलैन्ह कहलथि छथि "लिलो काका" हम नाम बड सुनने रहियैन्ह मुदा भेंट हुनका s पहिल बेर s रहल छल पॉँच दस मिनट हुनका s हम सब गप्प कयलहुँ ताहि के बाद चलि गेलाह ओतबहि काल मे दू टा गप्प हुनक विषय मे हम सब बुझलहुँ पहिल जे हुनका सांप बड डर लागैत छलैन्ह दोसर हुनका कियो बुढ कहैन्ह से पसीन नहि छलैन्ह हुनका गेलाक बाद तुंरत हमरा कहलाह हमर दोसर नाटकक नाम भेंट गेल "लिलो काका"

"बड़का साहेब" नाटक मे महिला शाखा केर हस्तक्षेप नाटक केर पूर्वाभ्यास के बीच मे जे नाटक सब होइत छलैक ताहि सs तंग आबि सोचि लेने छलथि जे आब दोसर संस्था के लेल नाटक नहि करब "मिथिला सांस्कृतिक" परिषद नाटक के पाछू पाई खर्च करय लेल सेहो तैयार नहि रहैक सब सोचि अपन अभिन्न मित्र बालमुकुन्द जी , श्री बैद्यनाथ जी श्री पूर्णानंद जी के सँग लs हुनका सबहक सहयोग एकटा नाट्य संस्था के स्थापना कयलैन्ह जाहि केर नाम राखल गेलैक "मिथिलाक्षर" (नाट्य एवं संगीत संस्था) मिथिलाक्षर के bye laws मे देल गेलैक जे व्यक्ति एहि संस्थाक सदस्य s सकैत अछि जे कोनो तरहक कलाकार हो कला से प्रेम राखैत हो मुदा सदस्यताक लेल कोनो शुल्क नहि छलैक

हिनकर आदति छलैन्ह जे कैयेक टा नाटकक नाम लैत रहैत छलाह मिथिलाक्षरक स्थापनाक बाद तय भेलैक जे शीघ्र एकटा नाटक कायल जाय कलाकार सब केर एकटा बैठक बजायल गेलय ओहि मे तय भेलैक जे नाटक होयत दू दिन नाटक होयत एकटा हिन्दी एकटा मैथिली मे कलाकार सब के नाटक केर नाम से बता देल गेलय मैथिली मे "लिलो काका" जखैन्ह हिन्दी केर नाटक के नाम कलाकार सब पुछलथिन s कहि देलथिन"डम डम डिगा डिगा "। मैथिली नाटकक नाम s हमरा बुझल छल हिन्दी वाला सुनि हमरो आश्चर्य भेल ओ नाम हुनका तत्काल ध्यान मे अयलैन्ह आ कहि देने रहथि।

"लिलो काका" नाटक जाहि समय लिखैत छलाह ओहि बीच में एक दिन हमरा ओकर संवाद सुनाबैत कहलाह लिलो काका के अंत में हम मारि देबैन्ह से इ नाटक केर नाम हम सोचि रहल छि लिलो काका सs "मिस्टर नीलो काका " कs दिये आ ओहि दिन सँ लिलो काका सँ नाटकक नाम "मिस्टर नीलो काका "भs गेलय।

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर पूर्वाभ्यास (रिहल्सल) जाहि समय होइत छलैक ओहि समय हम सपरिवार सब दिन रिहल्सल में जाई। अपने नीलो काका केर मुख्य भूमिका क रहल छलाह विक्की से ओहि में बालकलाकार के भूमिका में छलाह पुत्तु हिन्दी वाला नाटक के बालकलाकार छलाह आ बचलहुँ हम तs हमर काज पहिल छल जे सब दिन रति में घर आबि ओहि दिनका पूर्वभ्यासक समीक्षा केनाई दोसर कहि देने छलाह जे मंच पर बेसी भीर नहीं लगेबाके अछि ताहि हेतु ओ हमरे सम्हारे के छल। हम सब, सब दिन साँझ ६बजे रिहल्सल लेल जाई आ राति ९ बजे सँ पहिने कहियो नहिं लौटी।लौटलाक बाद बालमुकुन्द चौधरी आ इ बैसैथ आ ओहि समय व्यवस्था केर काज आ विचार विमर्श सब होय। कहि सकैत छि जे जूता सिलाई से लs कs चंडी पाठ तक स्वयं हिनके सम्भारय के छलैन्ह। बालमुकुन्द जी तs संग रहबे करैत छलाह।

नाटक सs पहिनहि सबटा टिकट बिका गेल छलैक दुनु नाटकक सफल मंचन भेलैक आ मैथिली के संग संग हिन्दी प्रेमी सब के सेहो नाटक में एकटा नवीनता भेटलैक। रातों राति जमशेदपुरक मंच आ जमशेदपुर केर नाट्य प्रेमी के बीच श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर केर नाम आबि गेलैन्ह

"मिस्टर नीलो काका" आ "डम डम डिगा डिगा" केर सफल मंचनक किछु महिना बाद पटनाक मैथिली संस्था "अरिपन "एकटा अन्तराष्ट्रीय नाट्य समारोहक निमंत्रण पठेने रहैक जाहि के इ स्वीकार क लेलाह। कलाकार सब स पूछल गेलय तs सब तैयार छलाह। समय बहुत कम छलैक मुदा नाटक केर सफल मंचन आ कलाकार सब के उत्साह हिनका और उत्साहित क देलकैन्ह। रिहल्सल ठीक ठाक चलैत छलैक अचानक एक दिन एकटा कलाकार जिनकर नाम लक्ष्मीकांत छलैन्ह आ जे सनिचराक भूमिका मे छलाह अयलाह आ कहलाह हुनक गाम गेनाइ बड़ आवश्यक छैन्ह मुदा ओ चारि पॉँच दिन में आबि जयताह। हिनकर मोन तs नहि मानलैंह मुदा फेर सोचलाह कैल नाटक छैक आ ओ आश्वासन देने छथि तs आबिये जयताह। रिहल्सल चलैत छलैक ओहि बीच एक दिन सांझ मे हम सब रिहल्सल लेल पहुँचलहुँ तs एक महिला कलाकार जे काकी के भूमिका में छलिह हुनकर समाद अयलैन्ह जे ओ पटना नहि जा सकैत छथि हुनका कोनो आवश्यक काज स शहर स बाहर जाय परि रहल छैन्ह। इ सुनतहि इ चिंतित भ गेलाह ओहि दिन रहल्सल की हेतैक सब कियो विकल्प के विषय मे सोचय लागि गेलहुँ। कलाकार सब के कहि देल गेलय घर जेबाक लेल, आ इ जे काल्हि धरि किछु ने किछु हेबे विकल्प भा जेतैक कलाकार सब के गेलाक बाद हम चारू गोटे आ बालमुकुन्द जी बाचि गेलहुँ मुदा हमरा सब के किछु नहि फुरैत छल। इ दुनु गोटे हमरा सs सेहो विकल्प केर विषय मे पुछलाह मुदा हमहु निरुतर रही, की कहितियैन्ह। आब त इज्जत के सवाल भs गेल छलैक।

बालमुकुन्द जी आ इ किछु समय के लेल बाहर गेलाह आ भीतर आबि हमरा कहलाह, "आब इ अहींके करय पडत"। इ सुनतहि हमरा हँसी लागि गेल, इहो हँसय लगलाह। किछु समय बाद इ गंभीर भs कहलाह "आब हम मजाक नहि क रहल छी"। आब इ हमर सबहक इज्जत केर सवाल छैक आ हमरा सब के दोसर स्त्री पात्र एतेक कम समय मे भेन्टनाइ बहुत कठिन अछि दोसर हमरा अहाँ पर विश्वास अछि अहाँ इ भूमिका निक सs कs सकैत छि।" हम निरुत्तर भ गेलहुं कहितियैन्ह की, इज्जत के सवाल छलैक। तय भेलय जे काल्हि सs हम काकी के भूमिका मे रहब आ रिहल्सल करब।

दोसर दिन हम सपरिवार रिहल्सल के लेल पहुँचि गेलहुँ आन दिन तs हम तरह तरह के टिप्पणी दैत छलहुँ मुदा ओहि दिन एकटा कलाकार के रूप मे पहुँचल रही। कलाकार सब के कहि देल गेलैंह जे आय स काकी के भूमिका मे हम रहब। हमर सब संवाद हिनके संग छलैन्ह अर्थात काकी के सब टा संवाद काका के संग छलैन्ह जे हमरा लेल बड़ कठिन छल। एक तs एतेक नीक कलाकार आ ताहू मे पति संग अभिनय केनाई । खैर रिहल्सल शुरू भेलय जखैन्ह हमर संवादक समय आयल तs हम उठि कs स्टेज दिस गेलहुँ मुदा जहिना हमर संवादक समय आयल आ हम जहिना हिनका दिस देखलियैन्ह हमरा हँसी छुटि गेल हमरा सँग चौधरी जी सेहो हँसि देलाह। ओकर बाद हम कैयेक बेर प्रयास केलहुँ मुदा जहिना हिनका दिस नजरि जाय कि हमरा हँसि छुटि जाय आ संग मे चौधरी जी सेहो हँसि दैथि। अंत मे चौधरी जी के बाहर जाय लेल कहल गेलैंह मुदा कथि लेल हमर हँसि रुकत। ओहि दिन आन सब कलाकार अपन अपन पाठ कs घर जाय गेलाह । इ सब कलाकार के आश्वासन देलथिन जे घबरेवा के नहि छय काकी वाला भूमिका निक होयबे करत।

दोसर दिन हम सोचि क आयल रही जे हम हँसब नहि आ नीक सs रिहल्सल करब मुदा जहिना हमर बेर आबै हँसि हम नहि रोकि पाबी। इ अंतिम दिन रिहल्सल तक चललय मुदा घर मे कखनहु कखनहु इ हमरा किछु किछु बताबैत रहैत छलाह। हमरा अपनहि बड़ चिंता होय जे की होयत मुदा इनका हमरा पर पूर्ण भरोस छलैन्ह आ सब के कहैथ "चिंता जुनि करय जाय जाऊ इ स्टेज पर एके बेर कs लेतिह हमरा पूर्ण विश्वास अछि"। हम त हिनकर विश्वास देखि कs दंग रही मुदा अपना हमरा डर लागैत छल।

लक्ष्मीकांत नहि अयलाह आ समाद पठौलैन्ह जे ओ सीधे पटना पहुँचि जयताह। हम सब पटना के लेल बिदा भेलहुँ रास्ता मे इ हमर बड़का बेटा भास्कर के किछु किछु बुझाबैत जाइत छलाह पटना पहुँचलहुँ ओहिओ ठाम लक्ष्मीकांत नहि पहुँचलाह। हम सब जाहि दिन पहुँचल रही ताहि दिन साँझ मे हमर सबहक स्टेज रिहल्सल छल। भोर स इ भास्कर के सनिचराक पाठ याद करय लेल कहने रहथि संग संग अपनहु रहैत छलाह। होटल मे दू बेर रिहल्सल भेलैक आ साँझ मे स्टेज रिहल्सल। दोसर दिन श्री ठाकुर सपरिवार कलाकार सब सँग नाटक लेल तैयार रहथि। नाटक पटना आ पूरा मिथिला मे धूम मचा देलक।

मिस्टर नीलो काका के कैयेक टा पुरस्कार भेन्टलय, श्री ठाकुर के श्रेष्ठ कलाकार , श्रेष्ठ आलेख तथा श्रेष्ठ महिला कलाकार के लेल हमरा हमर छोट बालक के श्रेष्ठ बालकलाकार के लेल सेहो पुरष्कृत कायल गेलैन्ह।


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