Sunday, March 22, 2009

एक विलक्षण प्रतिभा जिनका हम सदिखन याद करैत छी (तेसर कड़ी)

गामक ओ समय हम कहियो नय बिसरि सकैत छी। ई ओहि समयक गप्प थिक जखैनि कि हमर बहिनक विवाह भs गेल छलैन्ह आ ओ सभ चलि गेल छलिह।हमर बाबूजी आ छोटका काका हमारा लेल वर ताकय लेल गेल छलैथ। आई कालिक हिसाब सs तs हम ओहि समय एकदम बच्चा रहि आ शहर में रहलाक कारणे हम गाम घरक बहुत किछु नहि बुझैत छलौं। सब सs बेसी विवाह बैसाख, जेठ आ आषाढ़ में होयत छैक, अर्थात शुद्ध रहैत छैक। ओहि ज़माना में, अर्थात १९७२ ईस्वी में गामक रौनक किछु और रहैत छलै। प्रतिदिन कतो नय कतो विवाह होयत छलैक जाहि में दादी हमरा लय जयबाक आग्रह अवश्य करैत छलीह। हमहूँ कहियो विवाह नय देखने छलौं, पहिल विवाह हम अपन दीदी (पितिऔत ) कs देखलियैन्ह।


ओही समय में बेसी विवाह सभा सs ठीक भेलहा सब रहैत छलैक जाहि कारणे हरबरी वाला विवाह हमरा देखय कs ओतेक इच्छा नय होयत छल, मुदा दादी केs मोन रखबाक लेल हुनका संग कतो कतो चलि जायत छलौंह। ओहि समय हम परीक्षा फलक प्रतीक्षा में रही आर कोनो काजो तs हमरा नहि छलाह ।


एक दिन हम, माँ आ दादी आंगन में बैसल छलियै कि एकटा खबासनी आयल आ दादी के कहलकैन्ह " मलिकैन कनि एम्हर आयल जाओ "। ई सुनतहि दादी ओकरा लग चलि गेलिह, पता नय ओ हुनका कि कहलकैन्ह। कनि कालक बाद दादी हमरा कहलैथ "चलs हम तोरा एकटा सोलकनि सबहक विवाह देखाबैत छियौक"। हमरा आश्चर्य भेल जे आई दादी केs की भेलछैन्ह जे ओ हमरा सोलकनि कs विवाह देखय लेल कहैत छथि। हम आश्चर्य सs पुछलियैन्ह "अहाँ सोलकनि कs विवाह देखय लेल जायब "? दादी मुसकैत हमरा कहलैथ "चलहि नय अहि ठाम, ब्रम्ह स्थान लग बरियाती छैक, दूरे सs खाली बरियाती देखि चलि आयब दूनू गोटे"।


हमारा मोन तs नहि होइत छलय बरियाती देखबाकs, मुदा हम दादी कs संग जएबाक जयबाक लेल तैयार भs गेलियैन्ह। ब्रम्ह स्थान लगे छलय, हम दुनु गोटे जखन ओतहि पहुँचलौं तs देखलियय जे ओतहि बीच में पालकी राखल आ ढोल पिपही बाजैत छलैह, जों आगु बढ़लौं तs देखैत छी जे ओहि पालकी में वर मुंह पर रूमाल देने बैसल छैथ आ एकटा बच्चा हुनका आगू में बैसल छलैन्ह, बरियाती सब सेहो बैसल छलैक। खैर हम सब आगू बढिकs बरियाती लग पहुँच गेलिये। हमरा निक भलहि नय लागैत छल मुदा पहिल बेर अहि तरहक बरियाती देखैत रही। हम आश्चर्य सs बरियाती देखैत रही कि कनिये कालक बाद सब बरियाती ठाढ़ भs गेलैथ आ पिपही ढोल जोर स बाजय लगलय। हम सब कनि पाछू भs गेलौं, जहिना पालकी उठलय कि हमरा माथ पर कियो पानी ढ़ारि देने छलs। हम त हक्का बक्का भs कs एम्हर ओम्हर ताकय लगलौं, त देखैत छी दादी कs हाथ में गिलास छलैन्ह। हम कानय लगलियय। ई देखि कs दादी हमरा तुंरत हँसैत कहलैथ गर्मी छलैक ताहि द्वारे ठंढा क देलियौक। हमरा बड़ तामस भेल।

हम सब जखैन घर पहुँचलौं, हम कानैत माँ सs कहलियय हम कहियो दादी संग विवाह देखैक लेल नय जायब। हमर एकटा पीसी ओहि ठाम बैसल रहैथ, कहि उठलीह, " नय कानि तोहरे निक लेल केलथुन"। हमरा किछु नय बुझय में आयल आ बकलेल जकां हुनकर मुंह देखैत पुछलियैन्ह "कि निक भेल, सभटा कपड़ा भीजि गेल"? ई सुनि कs ओ कहलैथ "गय बरियाती कs जेबा काल पानि माथ पर देला सs लोकक विवाह जल्दि होयत छैक ताहि लेल तोरा पानि देलथुन "। हम आर जलि भुनि कs ओतहि सs चलि गेलौंह। ओकर कनिये दिनक बाद हमर विवाह भs गेल।

जहिया हमर विवाह भेल ओहि समय हमर घरवाला श्री लल्लन प्रसाद ठाकुर इंजीनियरिंग के अन्तिम बरख में पढैत छलाह। हम मैट्रिक के परीक्षा देने रहि आ परीक्षा फल सेहो निकलि गेल छलs। हमर विवाह आषाढ़ मास में, (दिनांक १३ जुलाई) भेल छलs। विवाहक तुंरत बाद मधुश्रावणी छलैक ताहि द्वारे हम गाम पर रही गेलौं आ हमर काका मधु(हमर पितिऔत बहिन) के संग रांची चलि गेलाह । काका हमरा कहैत गेलाह जे ओ हमर परीक्षा फल आदि स्कूल सs लs कॉलेज में हमर नाम लिखवा देताह। तैं हम निश्चिन्त रही। हमर काका नाम लिखवेलाक बाद हमरा खबरि सेहो कs देलाह। हमर नाम "निर्मला कॉलेज रांची" में लिखायल छल।

दादी के आग्रह पर हमरा गाम पर रहि मधुश्रावनी करवा के छलs, बहिनक विवाह सs अपन विवाह आ मधुश्रावनी धरि करिब दू मास सs बेसी रहय परल छलs। हम पहिल बेर अपना होश में एतेक दिन गाम पर एक संग रहल रहि। ओना तs हम सब, सब साल गाम जायत रही, मुदा एक संग एतेक दिन नय रहैत रहि। ओ पहिल आ अन्तिम बेर छलs जे हम गामक मजा निक जकां लs सकलियैक।

1 comment:

Anonymous said...

जय मैथिल आ जय मिथिला,
अद्भुत एइछ मिथिलाक रीति आ रिवाज.
सुन्दर प्रस्तुति,
आभार

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